Monday 18 January 2016

शाम ढल गयी-वक्त भी गुज़र गया


शाम ढल गयी वक्त भी गुजर गया
समय का पहिया भी इस दौर से गुज़र गया
मिले थे जिनसे अरसों बाद, चेहरा उन्हें देख कर फिर से खिल गया
शाम ढल गयी वक्त फिर गुज़र गया

यादें लाएं हैं साथ में,महसूस करेंगे फिर से-सोचकर दिल फिर से भर गया
शाम ढाल गयी वक्त फिर गुज़र गया
लाएं हैं साथ यादें आपकी सहेज़ कर फिर से
वो बन्द बक्से-वो अटखेलियां-वो आपको देखकर मुस्कुराना फिर से,
सब शहर के गलियारों में,फोन से आपकी आवाज तक सिमट कर रह गया;
शाम ढल गयी और
मैं अंकित
यादों में रहकर बातों में बनकर एक बा फिर
अपने सफर में निकल गया
"शाम ढल गयी-वक्त भी गुज़र गया"
 ‪#‎अंकित‬

शाम ढल गयी वक्त भी गुजर गयासमय का पहिया भी इस दौर से गुज़र गयामिले थे जिनसे अरसों बाद, चेहरा उन्हें देख कर फिर से खिल ग...
Posted by Alberto Ap McGill on Friday, 15 January 2016